वास्तु शास्त्र क्या है ?
वास्तुशास्त्र शिल्प कला का एक प्राचीन भारतीय वज्ञान है जो आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने में आर्किटेक्ट के लिय एक दिशानिर्देशन का कार्य करता है । वास्तुकला भारतीय संस्कृति की समृद्ध परम्परा का दर्पण है, जिसमें जीवन यापन की दृष्टि से मनुष्य की प्रथम अवश्यता गृह का चिन्तन बहुत हि विस्तार से प्राप्त होता है । भारतीय चिन्तन आदि काल से बहुत समृद्ध रहा है यहाँ न केवल मात्र मनुष्यों के लिय हि नहीं अपितु संसार में स्थित अन्य जीवों के लिय भी समान चिन्तन किया जाता रहा है, वसुदेवकुटूम्बकम् कि यह भवना शास्त्र को और अधिक प्रासंगिकता प्रदान करता है ।
वास्तुशास्त्र किसी स्थान विशेष पर किए जाने वाले निर्माण का एक सैद्धान्तिक विज्ञान है । जो वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व में लाखों लोगों तक पहुँच गया है । यह मानना गलत नहीं होगा कि इसका इसका उद्भव भारतवर्ष में वैदिक सभ्यता के साथ हि शुरू हो गया था इस बात के प्रमाण ऋग्वेद में स्पष्ट रूप से प्राप्त भी होते हैं “ वाष्तोष्पते प्रतिजानीयस्त्वावेशो अनमीवोभवानः…” यह एक पवित्र विज्ञान है जिसमें भवन-नगर-ग्राम आदि निर्माण के सभी पक्षों को प्रस्तुत किया गया है । वर्तमान में यह सीमित होकर भवन निर्माण के संदर्भ में अधिक प्रयोग में आता है । जिसमें मंदिर, दुकान, भवन, कार्यालय, फैक्ट्री आदि मुख्य हैं।
भारतीय वास्तुशास्त्र में पञ्च तत्वों को आधार माना गया है जो इसे अन्य वास्तुशास्त्रीय पद्धतियों से श्रेष्ठ बनाता तथा प्रभाव की दृष्टि से भी अधिक लाभकारी बनाता है । वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो वास्तुविज्ञान निर्माणस्थ भवन के लेआउट का ज्ञान रूप है जिसमें वहाँ रहने वाले लोगों के लिय शान्ति और समृद्धि का चिन्तन किया गया है । किसी भवन को निर्माण करना भाऊत बड़ी चुनौती नहीं है वर्तमान काल में तो बिल्कुल भी नहीं आज विभिन्न तकनीकों कि सहायता से अनेक भवन बनाए जा रहें वस्तुतः इसमें चुनौती का जो पक्ष है वह याहि है कि निर्माण के पश्चात जो वहाँ रहने वाले हैं क्या यह भवन व निर्माण वस्तु उनके जीवन में कुछ वृद्धि देने सक्षम है कि नहीं याहि महान चिन्तन वास्तुशास्त्र के माध्यम से भारतीय वैदिक ऋषियों ने मनुष्य कल्याण हेतु प्रस्तुत किया है और आदि काल से चला आ रहा यह शास्त्र यथावत अपने स्थान पर स्थित है यहि इस बात का एक भी प्रमाण है तथा तथ्यों द्वारा प्रमाणित भवन सम्बन्धि विज्ञान है, मात्र कोरी गप नहीं ।
वास्तुशास्त्र कैसे काम करता है ?
इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अपने भीतर अनेक ऊर्जाओं को समाहित किया हुआ है, हम जहां निवास करते हैं वह इसी ब्रह्मांड का हि एक छोटा सा हिस्सा है । यह ऊर्जाएँ मुख्य रूप से दो प्रकार से बांटी जा सकती है जिसे हम सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा कहते हैं इनका प्रभाव सर्वत्र होता है जो व्यक्ति जितना अधिक इनके संपर्क में आता है, उनमें इन ऊर्जाओं का उतना हि अधिक प्रभाव देखा जा सकता है ।
हम अक्सर ऐसा अनुभव करते हैं कि जब हम किसी नए स्थान में जाते हैं तो कभी तो हम बहुत हि सकारात्मकता का अनुभव करते हैं किन्तु किसी-किसी स्थान पर बहुत हि नकारत्मक भावों को प्रकट करते हैं खुद को अस्वस्थ मेहसूस करते हैं यह अनुभव जन्य ज्ञान हमें उस स्थान विशेष पर स्थित सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से हि होता है जिसे अंग्रेजी में पाज़िटिव एण्ड नेगटिव वाइवेस कहते हैं । एसा तभी होता है जब किसी स्थान पर वास्तु सम्बन्धित निर्माण अथवा वास्तु अनुसार वहाँ वस्तुओं को स्थान न दिया जाए ।
इसलीय यह शास्त्र बहुत हि महत्वपूर्ण हो जाता है जिससे कि आपके पास आने वाला प्रत्येक व्यक्ति आपसे मिल कर अच्छा अनुभव कर ।
वस्तुतः वास्तुशास्त्र किसी स्थान पर इस तरह काम करता है कि यह अपने वैज्ञानिक नियमों के आधार पर उस स्थान विशेष पर विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है ताकि वहाँ रहने वाले लोगों के लिय एक प्रगतिशील वातावरण बनाने में समर्थ हो ।