भगवान शिव का पावन श्रावण मास आते ही दसों दिशाएँ ” ॐ नमः शिवाय ” के मंत्र जाप में संलग्न हो जाती हैं सारा वातावरण शिवमय हो जाता है , शिवलिंग का रहस्य यूँ तो सभी शिव भक्त जानते है परन्तु कभी कभी कुछ जिज्ञासु भक्त इसका अर्थ पुरुष के जननांग से मान लेते है जबकि ऐसा कदापि नहीं है , शिव पुराण में श्री सूत जी महाराज और ऋषियों का एक रोचक संवाद प्राप्त होता है जिसमे ऋषियों ने सूत जी से पूछा – की मूर्तियों में ही सभी देवताओं की पूजा होती है ( लिंग में नहीं ) , परन्तु भगवान शिव की सब जगह मूर्तियों और लिंग में भी क्यों की जाती है ?
इस पर सूत जी कहते हैं की इस अद्भुत प्रश्न का प्रतिपादन स्वयं महादेव के सिवा कोई और नहीं कर सकता परन्तु इस प्रश्न के समाधान के लिए शिव जी ने जो कहा है तथा गुरु मुख से जो मैंने सुना है उसका मैं क्रमश वर्णन करता हूँ ! सूत जी कहते हैं की भगवन शिव का निराकार स्वरुप शिवलिंग साक्षात ” ब्रह्म ” है जिसमे अखिल ब्रम्हांड की कल्पना की गयी है तथा रूपवान शिव का प्रतीक शिव की मूर्ति है अतः वह दोनों रूप में पूजे जाते हैं !
वस्तुतः देखा जाए तो शिव जी वैदिक काल में रूद्र के रूप में पूजे जाते थे उनके ११ सूक्त भी इस विषय में प्राप्त होते हैं जिसमे उन्हें औषधियों का स्वामी व काल से रक्षा करने वाला देवता माना गया है ! कालांतर में रूद्र ही शिव हो गए , शिवलिंग की उत्पति का विशद वर्णन विद्येश्वर सहिंता के अध्याय ५ से ८ में वर्णित है ! अतः पौराणिक व वैदिक कथाओं के अनुसार शिवलिंग कोई जननांग ना होकर साक्षात ” ब्रह्म ” का निराकार सवरूप है जिनकी भक्ति साधना से पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति होती है !
॥ ॐ नमः पार्वती पतये हर हर महादेव शम्भो ॥
– Palmist DK Shastri –