फलित ज्योतिष मे काल सर्प दोष को अत्यधिक महत्व दिया जाता है क्योंकि अधिकांश जन्म पत्रिकाओं मे काल सर्प , पित्र दोष या मंगल दोष की वजह से जातक के विवाह , नौकरी व स्वास्थ्य मामलों मे संघर्ष पूर्ण परिस्थिति बनी रहती है परंतु उसका कोई ठोस हल निकलता हुआ ना नज़र आने की अवस्था मे निराशा बनी रहती है ।
यह योग कैसे निर्मित होता है ?
यह योग राहू से प्रारम्भ होकर केतू पर्यंत सभी ग्रहों के आ जाने पर पूर्ण काल सर्प योग अन्यथा आंशिक काल सर्प योग का निर्माण करता है याद रहे केतू से राहू के मध्य ग्रहों के आने पर काल सर्प योग मान्य नहीं होता है ।
क्या काल सर्प दोष हमेशा बुरा फल देता है ?
सर्प दोष सदैव अशुभ फल नहीं देते है बहुत से प्रसिद्ध व्यक्तियों की कुंडली मे काल सर्प योग होने पर उन्होने संघर्ष के बाद आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की है अतः राहू केतू का लग्न व राशि के स्वामी से साथ उत्तम संयोग होने की अवस्था मे व काल सर्प दोष भंग होने की अवस्था मे जातक एस योग का उत्तम फल प्राप्त करता है ।
काल सर्प दोष के प्रकार :-
ज्योतिष की 12 राशियों के लग्न के आधार पर लगभग 288 काल सर्प योग बन सकते हैं परंतु प्रमुख रूप से ये 12 प्रकार के होते हैं
- अनंत काल सर्प योग – यह योग लग्न से सप्तम के मध्य निर्मित होता है एसके अशुभ प्रभाव के कारण मानसिक अशांति , बुरे विचार का आना व वैवाहिक जीवन मे अस्थिरता रहती है ।
- कुलिक काल सर्प योग – यह योग द्वितीय भाव से अष्टम के मध्य निर्मित होता है परिणामस्वरूप जातक कटु भाषी व गले के रोग से पीड़ित रहता है , धन संचय मुश्किल से हो पता है यदि हो तो एसबी निकाल जाता है ।
- वासुकि काल सर्प योग – यह योग तृतीय भाव से नवम भाव के मध्य निर्मित होता है परिणामस्वरूप भाई बहनो से मन मुटाव , अपयश व भाग्य की प्रतिकूलता का सामना करना पड़ता है ।
- शंखपाल काल सर्प योग – यह योग चतुर्थ से दशम भाव के मध्य निर्मित होता है परिणामस्वरूप घर व कार्य क्षेत्र मे अस्थिरता बनी रहती है व कभी कभी व्यवसाय मे दिवालिया होने की अवस्था हो जाती है।
- पद्म काल सर्प योग – यह योग पंचम से एकादश भाव के मध्य निर्मित होता है इस कारण जातक को विद्या व संतान प्राप्ति हेतु संघर्ष का सामना करना पड़ता है ।
- महापद्म काल सर्प योग – यह योग छठे से बारहवे भाव के मध्य निर्मित होता है इस कारण जातक को गुप्त रोग व गुप्त शत्रु का भय बना रहता है ।
- तक्षक काल सर्प योग – यह योग सप्तम से लग्न के मध्य निर्मित होता है इस कारण जातक वैवाहिक जीवन व पदोन्नति मे अवरोधों का सामना करता है ।
- करकोटक काल सर्प योग – यह योग अष्टम से द्वितीय भाव के मध्य निर्मित होता है इस कारण जातक ऊपरी बाधाओं के कारण व्यापार मे हानी उठाता है ।
- शंखचूड़ काल सर्प योग – यह योग नवम से तृतीय भाव पर्यंत निर्मित होता है इस कारण जातक को शासन के कार्यो मे अवरोध का सामना करना पड़ता है ।
- पातक काल सर्प योग – यह योग दशम से चतुर्थ भाव पर्यंत निर्मित होता है इस कारण जातक को माता पिता की सेहत की चिंता बनी रहती है ।
- विषधर काल सर्प योग – यह योग एकादश से पंचम के मध्य निर्मित होता है इस कारण जातक नेत्र पीड़ा व जन्मस्थान से दूर रहना पड़ता है ।
- शेष नाग काल सर्प योग – यह योग द्वादश से षष्ठम भाव के मध्य निर्मित होता है इस कारण जातक , कोर्ट कचहरी , गुप शत्रुओं व नेत्रा पीड़ा से पीड़ित रहता है ।
उपाय :- नदी व घाट के किनारे स्थित शिवालय मे काल सर्प दोष पूजन हेतु रुद्रभिषेक करवाए ! त्रयोदशी का व्रत करें व सोमवार या शनिवार के दिन सरसों के तेल व काले तिल का दान शिव मंदिर मे करें ।